बंगाल के चुनाव में अभी भी देरी है पर बंगाल अन्य राज्यों की तरह अभी भी कोरोना संक्रमण से जूझ रही है, ऐसे काल में गृहमंत्री अमित शाह के बंगाल के दो दिन के लिए चुनावी दौरा करना बंगाल के जनता के समझ के परे है।
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अमित शाह का बंगाल दौरे में एक खास बात जो सामने आया है कि वो बंगाल को जात - पात के राजनीति में झोंकने का प्रयास कर रहे है। विचार का विषय यह है कि हिंदी बोले जाने वाले प्रदेशों की तरह बंगाल में जात पात की राजनीति में बंगाली समाज बिल्कुल विश्वास नहीं करते है और यही कारण जातीय संघर्ष आजतक बंगाल में देखने को नहीं मिला है।
अमित शाह शायद बंगाल के राजनीति को समझने की बडी भुल कर रहे है, बंगाल की राजनीति एक व्यक्ति विशेष के इर्द गिर्द घूमती है, पहले कांग्रेस के सिद्धार्थ शंकर रे, फिर सीपीएम के ज्योति बसु और आज सुश्री ममता बनर्जी जिन्होंने सीपीएम के 34 साल पुराने किला को गिराने का काम कर चुकी हैं।
भाजपा बंगाल में इतने सालों में एक भी प्रतिभाशाली व्यक्ति या नेता को तैयार नहीं कर सके जो बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी को आगामी विधान सभा में चुनौती दे सके। बंगाल के लोग भाजपा के साइबेरियन बर्ड या दिल्ली से आयायत किए नेता के चेहरे पर विश्वास नहीं करने वाले है।
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