प्रधान मंत्री को छोड़कर सभी मोदी सरकार के मंत्री मंडल ने अमित शाह के अगुवाई में जिस प्रकार एक अपराधी अर्नब गोस्वामी के अपराधिक कृत के लिए लामबंद होते देखा गया यह किसी भी तरह से देश में एक स्वास्थ राजनीति का परिचायक नहीं हो सकता है।
समझने वाली बात यह है कि इस प्रकार का मंत्रिमंडल के द्वारा हल्ला बोल को एक राजनीतिक षड्यंत्र के रूप में देखा जाना चाहिए और जिसे बिहार के चुनाव को ध्यान में रखकर खेला गया है।
भाजपा के हर राजनीतिक कृत में एक उद्देश्य छुपा रहता है जिसे खोज कर बाहर निकलना जरूरी होता है। जिस प्रकार से बिहार के चुनाव में एनडीए किरकिरी और तेजस्वी यादव के हर राजनीतिक रैलियों में अपार भीड़ देखने को मिल रहा था उससे भाजपा और नीतीश कुमार के घोर निराशा पैदा कर चुका है।
इस प्रकार के भाजपा और नीतीश कुमार के विफलताओं से बिहार के जनता के ध्यान को भटकाने के लिए अर्नब गोस्वामी के मुद्दे को भाजपा ने हथियार के रूप में लिया गया ताकि चुनाव पर चर्चा ना होकर गोस्वामी पर चर्चा केंद्रित हो सके।
बिहार के आखरी दौर के चुनाव में पीएम मोदी और नीतीश कुमार ने नए-नए टोटके आजमाने की कोशिश किया जैसे पीएम के द्वारा बिहार के लोगो को पत्र लिखना और नीतीश कुमार द्वारा अपने जीवन के आखिरी चुनाव की घोषणा को टोटके के रूप में देखा जाना चाहिए।
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