Wednesday, 31 July 2019

क्या मोदी सरकार हिन्दु महिलाओं के लिये “ जसोदापीडा "मुक्त कानून “ संसद मे पारित करेगी

भले ही मोदी सरकार ने राज्य सभा मे तीन तलाक के बिल को धोखे से पास करा लिय है पर धोखे से पास किये गये इस बिल के पास होने को ऐतिहासिक नही कहा जा सकता है ।


इस विवादित बिल को अगर गौर से देखा जाये तो यह बात साफ झलकती है कि आर.एस.एस और भाजपा इस बिल के जरिये मुस्लिम समाज द्वारा भाजपा को वोट ना दिये जाने पर अपना गुस्सा उतारा है, तीन तलाक जैसे एक Civil matter या issue होने के बावजूद इस बिल मे सजा का प्रविधान का डालना ही इस बिल को विवादित बनाती है ।

http://thoughtofnation.com/?p=911&_thumbnail_id=912&fbclid=IwAR1b9-h46_6-_JM9MieCp3KgYyeEhTMElOfSYzo9Ry3bO735MDJnbutizTI

https://aajtak.intoday.in/lite/story/asaduddin-owaisi-comment-triple-talaq-bill-rajyasabha-1-1106343.html?__twitter_impression=true


जब कि Hindu Marriage Act के आधार पर कोई हिन्दु विवाहित पुरुष अपने पत्नी के खिलाफ या महिला अपने पति के खिलाफ कोई Divorce suit सिविल कोर्ट मे दाखिल करता या करती है तब उन पर Criminal Offense नही लागु होती है । आखिर Divorce suit मे तलाक दिये जाने की बात ही कही जाती है ।


जब तीन तलाक के बिल मे या उच्चतम न्यालय ने यह मान चुकें है कि एक साथ तीन तलाक कहे जाने के बावजूद भी शादी नही टुट रही है तो फिर भाजपा और आर.एस.एस सजा का प्रविधान को जोडकर मुस्लिम समाज के पुरुषो पर क्यों और कौनसा अपने गुस्सा उतारना चाहते है ।


तीन तलाक के इस विवादित कानून के जरिये मोदी सरकार ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है, पहला निशाना मुस्लिम पुरुषो को इस कानून के जरिये प्रताडित करना, दूसरा शरियत कानून मे दखलअन्दाजी करना और तीसरा मोदी भक्तो को खुश करना रहा है ।


अब आगे देखना है कि मोदी सरकार हिन्दु महिलाओं के लिये “ जसोदापीडा "मुक्त कानून “ कब संसद मे पारित करते है ।
(जसोदा पीडा = जब कोई मर्द अपनी पत्नी को बिना तलाक छोड़ देता हैं, उसे,"जसोदा पीडा"कहते हैं)

Tuesday, 30 July 2019

तीन तलाक के बिल के पास होने पर मोदी सरकार और गोदी मीडिया ऐसे खुस थे मानो हिंजडे के घर विकास पैदा हुआ है

उन्नाव के रेप पीड़िता के वाहन को जिस प्रकार से रेप के आरोपी और भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर द्वरा अपने षडयन्त्र के जरिये अपने गुर्गो की मद्द से रेप पीड़िता और उनके परिवार को योजना बद्ध तरिके से ट्रक के द्वरा कुचलने का काम किया है वो कोई चौंवकाने वाला नही था, इस घटना के पिछे निश्चित रुप से अनुमान लगया जा सकता है इसमे प्रदेश शासान की भूमिका भी अहम रही ।

https://khabar.ndtv.com/news/india/unnao-rape-victim-family-says-kuldeep-singh-forcing-to-compromise-2077356?akamai-rum=off&__twitter_impression=true&fbclid=IwAR24zwce4ThD2COVNjkoT_y6lMx1CFSz7sNfa95tv0oci9lCdYOyg8pJI5g

इस बात से प्रदेश शासन क्या इन्कार कर सकते है कि रेप पीड़िता ने आरोप लगाई थी कि कुलदीप सेंगर जेल के अंदर से धमकी भरे फोन कर कहते थे कि अगर जिंदा रहना चाहते हो तो अदालत में बयान बदल दो. वर्ना तुम्हारे साथ पुरे परिवार का खात्मा कर दिया जायेगा और साथ मे कुलदीप सेगर ने सुझाव मे दिल्ली चले जाने की बात को भी रखा था ।
मीडिया रिपोर्ट के सुत्रो से यह भी जानकारी मिली है कि पीड़िता ने धमकी वाले मामले की सूचना पुलिस प्रसासन को दिया था पर प्रदेश की पुलिस ने इस धमकी का कोई सज्ञान नही लिया ।
एक तरफ जहां पीड़िता अपने जीवन के लिये संघर्ष कर रही थी और देश के लोग सडक से संसद तक भाजपा शासन के खिलाफ आवाज बुलन्द कर रहे थे और तभी भाजपा के अवतार पुरुष मोदी ने इस मामले को दबाने या मुद्दे को बदलने के नियत से मामा सकूनी की तरह राज्य साभा मे तीन तलाक के बिल पेश ही नही किया बल्कि उच्च सदन से पास भी करा लिया।
मोदी सरकार इस बिल के पास होने पर ऐसे खुश थे जैसे सरकार ने किसी हाथी के पिछवाडे तीर मार दिया हो, हांलाकि यह बिल कभी पास ना होता अगर कांग्रेस के सभी राज्य सभा सदस्य सदन मे उपस्थित होते ।

Sunday, 28 July 2019

Political Analysis of India: विधायकों के खरीद-फरोक्त और आरटीआई संशोधन मे विरोधी...

Political Analysis of India: विधायकों के खरीद-फरोक्त और आरटीआई संशोधन मे विरोधी...: मोदी सरकार (प्रथम) के दौरान देश की जनता को विकास अलबत्ता देखने के लिये आंखे भले ही तरस गई थी पर लोगो का मानना है कि सरकार की पहली प्राथमि...

विधायकों के खरीद-फरोक्त और आरटीआई संशोधन मे विरोधी पार्टीयों मे सेंध मारी मे क्या भाजपा ने Electoral Bond के रुपयों से किया है ?


मोदी सरकार (प्रथम) के दौरान देश की जनता को विकास अलबत्ता देखने के लिये आंखे भले ही तरस गई थी पर लोगो का मानना है कि सरकार की पहली प्राथमिकता देश के उन बडे पूंजीपति को बैंक के भारी-भरकम रुपयों के साथ विदेश भागने के मार्ग सुगम करना था, 2004 से 2009 तक जितने पूंजीपतियों ने बैंक कर्ज को लेकर भागने मे कामयाब हुए है वो देश मे मिशाल बनकर रह गई है ।

मोदी सरकार 2 की शुरुवात भले ही बजट सत्र से शुरु हुई हो पर इस बजट सत्र मे लगभग 21 कानूनी संशोधन पास किये जिससे आम लोगो के भलाई कहीं नही देखने को मिला बल्कि आम आदमी पार्टी के सांसद श्री संजय सिंह के द्वरा राज्य साभा के सदन मे दिये गये उस बात से लोग सहमत है कि मोदी 2 ने हर संशोधन को चोरी छुपे पास करया है ।


श्री संजय सिंह ने आगे कहा कि महत्वपूर्ण बिलों को मोदी सरकार संसदीय समितियों में अध्ययन के लिए नहीं भेजा है। साफ है कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है। उन्होंने मांग करते हुए कहा, आदरणीय प्रधानमंत्री जी संसद और सांसदों की जवाबदेही देश की जनता के प्रति पहले है।

चोरी-छिपे कानून पास करने के बजाय कानून को पहले संसद की वेबसाइट पर डालना जरुरी था, ताकि जनता की तरफ से कोई अतिमहत्वपूर्ण सुझाव हो पाता पर मोदी सरकार ने जान बूझकर संसदीय समितियों में चर्चा करने से बचते रहे।

लेकिन जिस ढंग से NIA Amendment Bill को पास करया गया है उससे तो यही लगा कि एनआईए के गठन को ही भूला दिया गया और थाने मे बदल दिया । इसमे कोई शक की बात ही नही है कि भाजपा ने Electoral Bond के जरीये अकूतधन जमा कर चुकें है और जिस कारण विधायकों के खरीद-फरोक्त मामले मे Highest Bidder के रुप मे उभरे है, अनुमान यह भी है कि Electoral Bond के रुपयो के जरीये तीन विरोधी दलो को आरटीआई कनून के संशोधन के लिये प्रलोभित किया गया होगा ।




 

Sunday, 21 July 2019

Political Analysis of India: कर्नाट्क के बागी विधायको को लेकर शिर्ष अदालत के आद...

Political Analysis of India: कर्नाट्क के बागी विधायको को लेकर शिर्ष अदालत के आद...: कर्नाटक के बागी विधयाको के मसले को लेकर उच्चतम न्यालाय बुरी तरह से फंस चुके है, हाल मे कांग्रेस और कर्नाटक के स्पिकर के द्वरा दायर किये ग...

कर्नाट्क के बागी विधायको को लेकर शिर्ष अदालत के आदेश क्या संविधान विरोधी है

कर्नाटक के बागी विधयाको के मसले को लेकर उच्चतम न्यालाय बुरी तरह से फंस चुके है, हाल मे कांग्रेस और कर्नाटक के स्पिकर के द्वरा दायर किये गये नये याचिका की सुनवाई भले आज होने वाली है पर पूर्व मे राजनीतिक दबाव मे आकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने Interim order मे व्हिप जारी करने पर कांग्रेस पर रोक लगाना ही संविधान विरोधी है

उच्चतम न्यालाय मे बैठे न्याधीश अगर संविधान और देश के संसद के दवारा पारित किये गये कानून की रक्षा करने मे असमर्थ है तो न्याधिशो को सामूहिक रुप से त्यागपत्र देकर उच्चत्म न्यालाय की गरिमा को बनाये रखना चाहिए ।

https://aajtak.intoday.in/lite/story/will-climax-of-karnataka-happens-on-monday-congress-jds-bjp-busy-in-meetings-1-1103535.html#click=https://t.co/hlIgdn5MUs

शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला न्याय सम्मत होना चाहिये ना कि किसी राजनीतिक दबाव या भय या Post retirement लाभ के लिये किया जाना चाहिये परन्तु कर्नाटक के बागी विधायको के व्हिप जारी वाले मामले मे कोर्ट ने कांग्रेस को बिना सुने ही व्हिप पर रोक लागाना किसी भी प्रकार से न्याय सम्मत तो न ही दिखा ।

निचली अदालत मे एक परम्परा है जिसके खिलाफ कोई आदेश जारी करना होता है तो अरोपी या उसके अधिवक्ता की मौजूदगी मे पारित किया जाता है, चाहे मुकदमा कैसा भी हो |



कांग्रेस के खिलाफ व्हिप वाले मामले मे बैन लगाने के पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने अदअलत की छोटी सी परम्परा को बनाए रखने मे असफल दिखे । गौरतलब है जिस समय शीर्ष अदालत व्हिप के खिलाफ आदेश पारित कर रहे थे उस समय कांग्रेस का कोई अधिवक्ता कोर्ट मे मौजूद नही थे ।

Friday, 19 July 2019

संविधान के रक्षक उच्चतम न्यालय ने कर्नाटक के विधायक प्रकरण मे संविधान की धज्जियां उडाकर रख दी

देश के बुद्धि जीवीयो का मानना है कि जब से केन्द्र मे मोदी सरकार का गठन हुआ है तब से उच्चतम न्यालाय अपनी गरिमा बहुत तेजी से गिरती जा रही है और साथ मे शिर्ष अदालत देश के राजनीतिक मामलो मे जिस प्रकार के आदेश पारित कर रहे है उससे से आम लोगो की नजर मे हंसी के पात्र बनते दिख रहे है ।

https://youtu.be/onoAoB3dJTU
(इस वीडियो को जरुर सुने )

उच्चतम न्यालाय की किरकिरी जितनी कर्नाटक के बागी विधयको के त्यागपत्र वाले याचिका मे हुआ शायद ऐसी जग हंसाई इसके पूर्व शिर्ष अदालत को कभी भी नही झेलनी पडी थी ।

मूलत: उच्चतम न्यालय की भूमिका और उनके कार्यप्रणाली देश के संविधान और कानून के अनूरुप करने के लिये होता है ना कि राजनीतिक दबाव मे आकर संविधान को ताक मे रखकर या संविधान की घोर उपेक्षा करके अपने आदेश को पारित करना होता है ।

कर्नाटक के विधायक वाले प्रकरण मे शिर्ष अदालत ने संविधान के अन्तर्गत Anti Defection Law को पुरी तरह से नकारते पाये गये और दूसरी तरफ No Confidence motion के दौरान जेडीएस और काग्रेस पार्टी को अपने विधायको को Whip जारी करने की संवैधानिक अधिकार पर रोक लगाकर बैठ गये छिनने का काम किया जब की विरोधी दल भाजपा को व्हिप जारी करने की खुली छुट दे दी ।

एक ही सदन मे एक ही विषय पर शासक दल पर एक मापदण्ड और विरोधी दल के लिये दूसरा मापदण्ड इसके पूर्व सुप्रीम कोर्ट मे कभी देखने को नही मिला था ।

Thursday, 18 July 2019

क्या भाजपा ने कर्नाटक के बागी विधायकों के लिये शीर्ष अदालत को ईवीएम की तरह हैक किया है

कर्नाटक के बागी विधायको ने जिस ढंग से अपने-अपने पार्टीयो से त्यागपत्र के मामले को लेकर विधानसभा के स्पिकर के खिलाफ अदालत पहुंचे थे और जिस प्रकार उच्चतम न्यालाय ने उनके याचिका को स्विकार किया उसी दिन देश के पढे लिखे लोगो को यह अहसास हो चुका था भाजपा कोर्ट को मैनेज करने मे सफल हो चुके है ।

जिस वरियता से शिर्ष अदालत ने बागी विधायको के याचिका को सुना उससे देश के लोगो को एहसास हो चुका था कि न्यालाय भाजपा के दबाव मे पुरी तरह से आ चुकी है और कोर्ट ने जो फैसला सुनया वो भी पूर्व कल्पित या आभासित थी ।

दूसरी तरफ यही शीर्ष अदालत आजतक राफेल स्कैम वाले मामले मे Revision Petition को लेकर मौन धारण किये हुए है जैसा मोदी Mob Lynching पर कोई ठोस कानून लाने मे मौन है । शायद कभी वो समय भी आयेगा जब लोग हतोउत्साहीत होकर सरकार के विरोध मे सुप्रीम कोर्ट मे याचिका डालने से कतरायेंगे

https://www.indiatoday.in/india/story/karnataka-floor-test-postponed-bjp-mlas-go-to-sleep-all-developments-1571065-2019-07-18

उच्चतम न्यालय के बागी विधायको पर दिये गये आदेश को उचित ढंग से समझा जाये तो यह देखने को मिला कि कोर्ट ने बागी विधयको के उपर No Confidence Motion के दौरान कोई भी Whip जारी करने पर रोक लगा दियें है और साथ मे अपने आदेश मे यह भी लिख चुके है कि पार्टी इन बागी विधायको No confidence Motion के दौरान सदन मे उपस्थित होने के लिये बाध्य नही कर सकते है ।

शीर्ष अदालत ने इस प्रकार के आदेश पारित करके भाजपा को Horse Trading के लिये दरवाजे खोलने का काम किया है, क्या अदालत यह समझ नही सके कि क्यो इतने विधायक अपने पार्टी छोड़ने मे अमादा थे, इस आदेश के जरीये उच्चतम न्यालय ने दल बदल कानून को नजर अन्दाज किया है जिस कारण द्ल-बदल कानून की महुत्व व गरिमा को कमजोर किया गया है ।