कर्नाटक के बागी विधयाको के मसले को लेकर उच्चतम न्यालाय बुरी तरह से फंस चुके है, हाल मे कांग्रेस और कर्नाटक के स्पिकर के द्वरा दायर किये गये नये याचिका की सुनवाई भले आज होने वाली है पर पूर्व मे राजनीतिक दबाव मे आकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने Interim order मे व्हिप जारी करने पर कांग्रेस पर रोक लगाना ही संविधान विरोधी है
उच्चतम न्यालाय मे बैठे न्याधीश अगर संविधान और देश के संसद के दवारा पारित किये गये कानून की रक्षा करने मे असमर्थ है तो न्याधिशो को सामूहिक रुप से त्यागपत्र देकर उच्चत्म न्यालाय की गरिमा को बनाये रखना चाहिए ।
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शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला न्याय सम्मत होना चाहिये ना कि किसी राजनीतिक दबाव या भय या Post retirement लाभ के लिये किया जाना चाहिये परन्तु कर्नाटक के बागी विधायको के व्हिप जारी वाले मामले मे कोर्ट ने कांग्रेस को बिना सुने ही व्हिप पर रोक लागाना किसी भी प्रकार से न्याय सम्मत तो न ही दिखा ।
निचली अदालत मे एक परम्परा है जिसके खिलाफ कोई आदेश जारी करना होता है तो अरोपी या उसके अधिवक्ता की मौजूदगी मे पारित किया जाता है, चाहे मुकदमा कैसा भी हो |
कांग्रेस के खिलाफ व्हिप वाले मामले मे बैन लगाने के पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने अदअलत की छोटी सी परम्परा को बनाए रखने मे असफल दिखे । गौरतलब है जिस समय शीर्ष अदालत व्हिप के खिलाफ आदेश पारित कर रहे थे उस समय कांग्रेस का कोई अधिवक्ता कोर्ट मे मौजूद नही थे ।
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