अगर आज मोदी सरकार हर संवैधानिक संस्थानों और देश के न्यालाय चाहे उच्च न्यायालय हो या उच्चतम न्यालाय को अपने उंगलियों पर नचाने की कूबत रखते है तो यह उनकी दंबगई ही वजह है, इनके इस दबंग शैली को और मजबूत करती है विपक्षी पार्टियो की साल भर की राजनीतिक उदासिनता, जब की आम जनता जो फेसबुक और ट्वीटर से जुडे हुए है वो तमाम राजनितिक दलो से ज्यादा राजनीतिक सचेतन है और कहीं ना कहीं मोदी सरकार के खिलाफ मुखर देखे जाते है ।
20 लाख ईवीएम चुनाव अयोग से गुम हो जाते है और यह मामला एक आम जन्ता मुम्बई हाई कोर्ट मे मार्च 2018 को एक जनहित याचिका के जरीये देश के सम्मुख लाने मे कामयाब होती है पर क्या इस मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टियो ने सरकार और चुनाव आयोग को संसद के सदन मे घेरने का काम किया है ? क्या वे इस विषय को लेकर सडको पर उतरे है ? जब कि भाजपा कांग्रेस के शासन काल मे एलपीजी गैस मे 15 रुपये बढाये जाने पर हल्ला करने मे नही चुके ।
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जब की मोदी 2 के आने के बाद एलपीजी गैस मे 85 रुपये बढाये गये पर आज तक किसी राजनीतिक विपक्षी पार्टी ने कोई धरना या प्रदर्शन नही किया और चुनाव के इतिहास मे चुनाव अयोग के सौजन्य से चुनाव सम्पन्न होने के बाद बिना सुरक्षा के खुली सडक पर ईवीएम और वीवीपैट सैर सपाटे करते रहे फिर भी कांग्रेस हो अन्य प्रमुख दलो ने अपने मूंह मे दही जमा के बैठे रहे जब की इस विषय के खिलाफ लोगो ने सोशल मीडिया मे खुब हल्ला मचाया ।
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हाल ही में न्यूज़ वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने ख़बर दी थी कि देश भर में 373 लोकसभा सीटों पर डाले गए वोट और ईवीएम से ग़िने गए वोटों की संख्या में अंतर है। उसके बाद न्यूज़ वेबसाइट न्यूज़ क्लिक ने ख़बर की है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की 120 लोकसभा सीटों में 119 सीटों पर डाले गए वोटों की संख्या और ईवीएम की ग़िनती में निकले वोटों की संख्या में अंतर |
लेकिन इन खबरो के बावजूद भी वे 21 विरोधी पार्टीयों के नेताओ ने कोई शोर-शराबा नही किया और ना ही 21 दलो के समूह ने चुनाव आयोग से मिलने गये, जब कि चुनाव आयोग इस खुलासे के बाद बैक फुट पर आ चुकी है और उन्हे जनता को जवाब देते नही बन रहा है, जब की हमेशा ही चुनाव आयोग इन्ही ईवीएम को लेकर कसमे खाती रही ।
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