कटु सत्य यह भी है कि 2013 मे त्रिपुरा के पिछले विधान सभा के चुनाव मे भाजपा ने त्रिपुरा के 60 विधान सभा सिटो के लिये 50 प्रत्यासी को मैदान पर उतारे थे, यह वो समय था जब कामधेनु गाय (ईवीएम) के रख रखाव की जिम्मेदारी कांग्रेस पर थी, 2013 के विधान सभा के चुनाव के नतिजे को आज ध्यान दिया जाये तो भाजपा 49 सिटो पर अपने जमानत तक नही बचा सकी थी I
हैरानी की बात यह भी थी कि त्रिपुरा के पिछले विधान सभा चुनाव मे भाजपा को मात्र 1.5 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे, जब की इस वर्ष (2018) भाजपा को 45% वोट मिले है, मजे की बात यह भी कि भाजपा ने इस बार आसाम के तर्ज पर त्रिपुरा के लिये किसी जमीनी नेता का नाम मुख्य मन्त्री के लिये नही उछाला था जैसा कि वे कर्नाटक मे आगामी विधान सभा चुनाव के लिये श्री यदुरप्पा का नाम मुख्य मन्त्री पद के लिये घोषित किया है I
देश के लोगो को पुरी तरह से यकीन है कि पीएम मोदी ने पिछले 4 साल के कार्यकाल मे त्रिपुरा के लिये कोई विशेष पैकेज की घोषणा भी नही किये थे और जहां तक मोदी मैजिक का सवाल है वो तो नोट बन्दी, जीएसटी और छोटे मोदी जैसे अनेक लोगो का देश के धन को लेकर विदेश पलायन के दंश झेल रहे है, पिछले चार साल मे जितने भी योजनायें मोदी जी ने डंका बजाकर शुरु किया था, वे सभी योजनाओ आज बिरगती को प्राप्त कर चुके है I
अब समझने की बात यह है कि भाजपा पिछले चुनाव मे प्राप्त 1.5 प्रतिशत वोटों को किस आधार पर 45 प्रतिशत बढाया, जब कि मोदी जी की अपनी दुर्दशा आज चरम पर पंहुच चुकी है I
इन दोनो प्रतिशतो के फर्क समझने और समझाने के लिये कोई ठोस वजह तो सामने दिख नही रही है, पर हां जहां तक कामधेनु गाय (ईवीएम) की दुहाई की बात है, भाजपा गाय दुहाई मे पारंगत हो चुके है और कांग्रेस अपने समय पर दुहने मे असफल रहे भले ही कांग्रेस और दोहन भाजपा का कर्नाटक मे भी देखने को मिलेगा I
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